Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple Ujjain : दोस्तों यदि आप मध्यप्रदेश की तीर्थनगरी उज्जैन में बाबा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने जा रहे हैं तो कुछ जरूरी बाते अवश्य जान लें।
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महाकालेश्वर मंदिर का इतिहास (Mahakaleshwar Temple History in Hindi)
श्री महाकालेश्वर मंदिर मध्यप्रदेश राज्य में उज्जैन नगर के मालवा क्षेत्र में क्षिप्रा नदी के तटपर स्थित है | हिन्दुओं का यह प्राचीन और प्रमुख मंदिर भगवान शिव को समर्पित है | जिसमे शिव की आराधना महाकालेश्वर के रूप में की जाती है। “महाकालेश्वर” के दो अर्थ होते है पहला अर्थ “समय” और “महा” यानि शिव की महिमा (महानता) और शिव का दूसरा अर्थ “काल” यानि मृत्यु से है।
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगो में स्थापित महाकालेश्वर का यह तीसरा ज्योतिर्लिंग माना गया है | इन मंदिरो को ज्योतिर्लिंग इसलिए कहा जाता है कियुँकि भगवान शिव इन स्थानो पर स्वयं प्रकट हुए थे| इसीलिए यह स्थान ज्योतिर्लिंग कहलाते है | इस मंदिर में शिवलिंग स्थापना की कथा राजा चन्द्रसेन और गोप-बालक से जुड़ी है।
महाकालेश्वर मंदिर का रहस्य और महिमा (Mystery and glory of Mahakaleshwar temple in Hindi)
श्री महाकालेश्वर मंदिर का चौकाने वाला रहस्य यह है की प्रतिदिन जब यहा कालों के काल महाकाल की भस्म आरती होती है। तो इस आरती में ताजा मुर्दे की भस्म से महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। भक्तो को आरती में शामिल होने के लिए पहले ही बुकिंग करनी पड़ती है। कियुँकि महाकाल की आरती का भक्तो को विशेष लाभ मिलता है |
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के बाद भक्तो को जूना महाकाल के दर्शन भी जरूर करने चाहिए। कियुँकि पुराने इतिहासकारो के मुताबिक ऐसा बताया गया है की जब मुगलकाल शासन में इस शिवलिंग को खंडित करने की आशंका बढ़ी तो मंदिर के पुजारियों इस शिवलिंग को छुपा दिया था और इसकी जगह दूसरा शिवलिंग रखकर उसकी पूजा करने लगे थे। बाद में उन्होंने उस दूसरे शिवलिंग को मंदिर के ही प्रांगण में एक दूसरी जगह स्थापित कर दिया था जिसे आज ‘जूना महाकाल’ के नाम से जाना जाता है।
12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकाल एक सर्वोत्तम शिवलिंग है कहते हैं कि आकाश में तारक शिवलिंग, पाताल में हाटकेश्वर शिवलिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर शिवलिंग है।
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महाकालेश्वर मंदिर की पौराणिक कथा (Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple Ujjain Story in Hindi)
हिन्दू धर्म की कई पुराण जेसे शिवपुराण स्कंदपुराण और महाभारत में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का उल्लेख किया हुआ है पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीनकाल में राजा चंद्रसेन उज्जयिनी पर राज्य करते थे। और शिव के परम भक्त थे | और शिवगुन मणिभद्र राजा चंद्रसेन के मित्र थे। एक बार मणिभद्र ने अपने मित्र राजा चंद्रसेन को एक चिंतामणि प्रदान की जो काफी शक्ति शाली थी । राजा ने जैसे ही मणि को गले में धारण किया तो पूरा प्रभामंडल जगमगा उठा | राजा की यश-कीर्ति देखकर अन्य राजाओं ने इस मणि को प्राप्त करने की बहुत कोशिश की लेकिन मणि राजा बहुत प्रिय थी। मणि न देने पर अन्य राजाओं ने राजा चन्द्रसेन पर आक्रमण कर दिया। तब राजा चंद्रसेन महाकाल की शरण में जाकर उनकी पूजा में ध्यानमग्न हो गए।
जब राजा चंद्रसेन महाकाल की पूजा में ध्यानमग्न थे | तो उस समय श्रीकर नाम का एक 5 वर्ष का बालक अपनी विधवा माता के साथ महाकाल के दर्शन के लिए आया । राजा को शिव की पूजा में ध्यानमग्न देख वह बालक भी शिव पूजा करने के लिए प्रेरित हो गया। पूजा सामग्री का सामान न जुटाने पर घर वापस लौटते समय वह बालक एक छोटा सा पत्थर का टुकड़ा ही उठा लाया | और अपने घर एकांत स्थल में बैठकर उस पत्थर की शिवलिंग के रूप में पूजा करने लगा। पूजा करते करते वह भक्ति में इतना लीन हो गया की माता के बार बार बुलाने पर भी बालक नहीं गया। उसकी माता इस बात पर बहुत क्रोधित हुई और उस पत्थर को उठाकर कही दूर फेक दिया।
जब बालक ने अपने नेत्र खोले तो यह देख वह शिव का नाम पुकारते हुए रोने लगा और बेहोश होकर वही गिर पड़ा | अपने प्रति बालक की ऐसी भक्ति देख भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए | बालक ने जैसे ही अपने नेत्र खोले तो उसके सामने एक विशाल भव्य मंदिर खड़ा दिखा उस मंदिर के अंदर एक बहुत ही प्रकाशपूर्ण तेजस्वी ज्योतिर्लिंग खड़ा है और प्रसन्न बालक उस मंदिर में जाकर शिव की पूजा करने लगा | जैसे ही उसकी माता को यह सुचना मिली तो वह भी दौड़ी हुई अपने पुत्र के पास आयी और उसको अपने गले से लगा लिया |और अपने बालक के साथ वह भी शिव की पूजा में लीन हो गयी।
तभी वह पर हनुमान जी प्रकट हुए और बोले की भगवान शिव अपने भक्तो को शीघ्र ही फल देते है इस बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्होंने इसको ऐसा फल दिया है जो ऋषि मुनियो को कठोर तप करने से भी नहीं मिलता | इस गोप बालक की 8वि पीढ़ी में नन्दगोप का जन्म होगा | जो स्वंय नारायण कृष्ण नाम से प्रतिष्ठित होंगे। इतनी बात कहकर हनुमान जी अंतर्ध्यान हो गये | कहते है भगवान महाकाल तब ही से उज्जयिनी में स्वयं विराजमान है।
दूसरी और ऐसा भी कहा जाता है की अवंतिकापुरी में एक तेस्जस्वी ब्राह्मण रहते थे जो शिव भगवान के परम भक्त थे | और शिव की आराधना में ध्यानमग्न रहते थे | एक दिन वहा दूसण नाम का अत्याचारी उनकी आराधना को भंग करने के लिए आया | ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर उसने पृथ्वी पर चारो तरफ अत्याचार की त्राहि मचा राखी थी। अपने परम भक्त को देख शिव भगवान वहा हुंकार सहित प्रकट हुए | और उस दूसण दानव को जलाकर वही भस्म कर दिया | इसीलिए उनका नाम महाकाल पड गया।
महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण एवं सरचना (Architecture of Mahakaleshwar Temple in Hindi)
वर्तमान में जो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित है मंदिर के गर्भगृह तक पहुँचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता बना हुआ है। जो की 3 खंडों में विभाजित है। सबसे पहले खंड में 25 मीटर उच्चा महाकालेश्वर मंदिर है दूसरे खंड में ओंकारेश्वर मंदिर और तीसरे खंड में श्री नागचन्द्रेश्वर मंदिर स्थित है। कहते है की जो नागचन्द्रेश्वर मंदिर में शिवलिंग स्थापित है उसके दर्शन साल में एक बार नागपंचमी वाले के दिन ही कराये जाते है | विशेष पर्व जैसे महाशिवरात्रि, श्रावण मास और हर सोमवार को यहां पे भक्तो की भीड़ उमड़ती है। मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुंड भी है।
मंदिर के पास एक कोटितीर्थ नाम का जलस्रोत है जब इल्तुत्मिश ने मंदिर पर हमला कर शिवलिंग को कोटितीर्थ में फिकवा दिया था। बाद में इसकी पुनर्प्रतिष्ठा करायी गयी।1968 में मंदिर के दो मुख्य द्वार का पुनःनिर्माण कराया गया था। एक द्वार मंदिर में प्रवेश करने के लिए जबकि दूसरा मंदिर से बहार जाने के लिए।
1980 में भक्तो की अपार भीड़ को देखते हुए बिड़ला उद्योग समूह के द्वारा एक विशाल मंडप का निर्माण करवाया गया था | मंदिर की व्यवस्था और देख रेख के लिए एक प्रशासनिक समिति का गठन भी तैयार की गया था है कहते है की इस मंदिर के 118 शिखरों पर 16 किलो सोने की परत चढ़ाई गई है।
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