Kamakhya Devi Temple Assam: यह मंदिर देवी सती के 51 शक्तिपीठो में शामिल भारत के गुहाहाटी असम में स्थित “कामाख्या मंदिर” के नाम से जाना जाता है.इस मंदिर में माँ की योनि की पूजा की जाती है इस लेख में आज हम आपको इस मंदिर की सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है। यदि आप कामाख्या मंदिर” की सम्पूर्ण जानकारी जानना चाहते है तो इस लेख को जरुर पढ़े।
कामाख्या मंदिर का इतिहास (History of Kamakhya Devi Temple in Hindi)
माँ कामाख्या का यह मंदिर भारत में असम राज्य की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से लगभग 8 km दूर नीलाचल पव॑त पर स्थित है। देवी सती के 51 शक्तिपीठो में से एक माँ कामाख्या का यह प्राचीन मंदिर माता सती के शक्ति रूप को समर्पित है। इस स्थान पर देवी सती की योनि गिरी थी। यह मंदिर तंत्र सिद्धि के लिए काफी प्रचलित है। यहां पर माँ भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। ऐसी मान्यता है की जो भी भक्त अपने जीवन में माँ कामाख्या के तीन बार दर्शन कर लेता हैं तो उसे जीवन के सरे पापो से मुक्ति मिल जाती है।
कामाख्या मंदिर की पौराणिक कथा (Kamakhya Devi Temple Story in Hindi)
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सती राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थी जिनका का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था। एक बार दक्ष प्रजापति ने अपने निवास स्थान कनखल हरिद्वार में एक भव्य यज्ञ का आयोजन कराया और इस भव्य यज्ञ में दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को छोड़कर बाकि सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया। जब माता सती को पता चला की मेरे पिता ने इस भव्य यज्ञ मेरे पति को आमंत्रित नहीं किया। अपने पिता द्वारा पति का यह अपमान देख माता सती ने उसी यज्ञ में कूदकर अपने प्राणो की आहुति देदी थी।
यह सुचना सुनकर भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए अपने अर्ध-देवता वीरभद्र और शिव गणों को कनखल युद्ध करने के लिए भेजा। वीरभद्र ने जाकर उस भव्य यज्ञ को नस्ट कर राजा दक्ष का सिर काट दिया। सभी सभी देवताओं के अनुरोध करने पर पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को दोबारा जीवन दान देकर उस पर बकरे का सिर लगा दिया। यह देख राजा दक्ष को अपनी गलतियों का पश्च्याताप हुआ और भगवान शिव से हाथ जोड़कर क्षमा मांगी। तभी भगवान शिव ने सभी देवी देवताओं के सामने यह घोषणा कि हर साल सावन माह, में कनखल में निवास करूँगा।
भगवान शिव अत्यधिक क्रोधित होते हुए सती के मृत शरीर उठाकर पुरे ब्रह्माण के चक्कर लगाने लगे। तब पश्चात भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित करा था। जिस कारन से सती के जले हुए शरीर के हिस्से पृत्वी के अलग-अलग स्थानों पर जा गिरे। जहा-जहा पर सती के शरीर के भाग गिरे थे वे सभी स्थान “शक्तिपीठ” बन गए। जहा पर ललिता देवी का मंदिर है इस स्थान पर माता सती की हाथ की उंगलिया गिरी थी। इसीलिए इस मंदिर की गणना 51 शक्तिपीठो में की जाती है। भक्त यहां पर आकर माँ ललिता देवी के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है।
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रजस्वला स्त्री
कहते है की मासिक धर्म एक स्त्री की पहचान होती है। जिससे की वो पूर्ण स्त्रीत्व मानी जाती है। लेकिन फिर भी हमारे समाज में एक स्त्री को मासिक धर्म (पीरियड) के चलते उसे अपवित्र माना जाता है। महीने के जिन दिनों में एक स्त्री को पीरियड होते है। उसे किसी भी पवित्र कार्य में शामिल नहीं होने दिया जाता। यहां तक की किसी भी धार्मिक स्थल पर पूजा करना मनाही होती है। वहीं दूसरी ओर इस मंदिर की महिमा देखिये।
यहां कामाख्या देवी की योनि की पूजा की जाती है। जिसमे 3 दिन के लिए कामाख्या देवी अपने मासिक धर्म चक्र से गुजरती है। इस तीन दिनो में मंदिर के कपाट भक्तो के लिए बंद कर दिए जाते है। इस दौरान कामाख्या देवी की योनि से रक्त प्रवाहित होता है। जिसके कारन मंदिर के पास में बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी का रंग कई दिनों तक लाल ही रेहता है। तीन दिन बाद माँ कामाख्या के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर दूर से आते है।
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