Tungnath Temple:- भारत एक ऐसा धार्मिक और आध्यात्मिक देश है, जिसमें अनेकों पवित्र धाम और प्राचीन मंदिर शामिल हैं। जो अपनी धार्मिकता, संस्कृति, और प्राचीन इतिहास के साथ जुड़ा हुआ हैं। ऐसा ही एक मंदिर देवभूमि उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। जिसे हाईएस्ट शिवा टेंपल इन द वर्ल्ड के नाम से भी जाना जाता है। तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) हिमालय के पांच यानी पंचकेदार मंदिरों में से एक है। जो हिमालय की गरिमा और प्राकृतिक सौंदर्य के बीचो बिच स्थित होने के कारण अपने आप में बेहद खास है।
दोस्तों अगर आप तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) जाने का प्लान बना रहे हैं या फिर आप केदारनाथ धाम जा रहे हैं और वहां से तुंगनाथ मंदिर जाने की सोच रहे हैं। तो इस आर्टिकल में हम आपको तुंगनाथ मंदिर के इतिहास, महत्व, और प्राकृतिक सौंदर्य के बारे में पूरी जानकारी देने वाले है।
Table of Contents
History of Tungnath Temple in Hindi (तुंगनाथ मंदिर का इतिहास)
तुंगनाथ मंदिर का इतिहास प्राचीन और धार्मिक कथाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह मंदिर पौराणिक कथाओं में वर्णित महाभारत काल से संबंधित है। और पांडवों से इसका गहरा संबंध है। तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल के रुद्रप्रयाग जिले में तुंगनाथ पर्वत पर स्थित है। और यह दुनिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर है। इसलिए इस मंदिर को हाईएस्ट शिवा टेंपल इन द वर्ल्ड के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर हिमालय के पांच पंचकेदार मंदिरों में से एक है। और लगभग 3,680 मीटर (12,073 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था। और इसे लगभग 1,000 साल पुराना माना जाता है।
इस मंदिर तक पहुँचने के लिए चोपता नामक स्थान से लगभग 4 किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी पड़ती है। ट्रेक मार्ग सुंदर दृश्यावलियों, हरे-भरे जंगलों और बर्फीली चोटियों से घिरा हुआ है। तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) के पास ही चंद्रशिला चोटी भी है, जहाँ से हिमालय की पर्वतमालाओं का शानदार दृश्य देखा जा सकता है। मंदिर का वास्तुशिल्प और उसके आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है। यहाँ की यात्रा विशेष रूप से गर्मियों के महीनों में की जाती है, जब मौसम अनुकूल होता है। सर्दियों में, मंदिर भारी बर्फबारी के कारण बंद रहता है, और इस दौरान मंदिर के भगवान की पूजा निचले क्षेत्रों में की जाती है।
Mythology of Tunganath Temple in Hindi (तुंगनाथ मंदिर की पौराणिक कथा)
तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) की पौराणिक कथा महाभारत के पांडवों और भगवान शिव से जुड़ी हुई है। यह पौराणिक कथा विशेष रूप से पांडवों के पश्चाताप और भगवान शिव के दर्शन की खोज के बारे में है। आइये इस पौराणिक कथा को विस्तार से समझते है।
महाभारत के युद्ध के बाद, पांडवों ने कौरवों को हराकर विजय प्राप्त की, लेकिन इस युद्ध में अपने ही परिजनों और गुरुजनों की हत्या करने के कारण उन्हें पाप का दोषी माना गया। अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए पांडव भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे, ताकि वे अपने कर्मों के पाप से मुक्ति पा सकें। भगवान शिव, पांडवों से नाराज थे और उनके सामने नहीं आना चाहते थे। इसलिए, उन्होंने एक बैल (नंदी) का रूप धारण कर लिया और हिमालय की ओर चले गए। पांडवों ने उनका पीछा किया और उन्हें खोजने का प्रयास किया। भगवान शिव ने खुद को पाँच अलग-अलग हिस्सों में विभाजित कर लिया और ये हिस्से अलग-अलग स्थानों पर प्रकट हुए।
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केदारनाथ: यहाँ शिव का पृष्ठभाग (कूबड़) प्रकट हुआ।
मध्यमहेश्वर: यहाँ शिव की नाभि और पेट प्रकट हुआ।
तुंगनाथ: यहाँ शिव की भुजाएं (हाथ) प्रकट हुईं।
रुद्रनाथ: यहाँ शिव का मुख प्रकट हुआ।
कल्पेश्वर: यहाँ शिव की जटाएं (केश) प्रकट हुईं।
पांडवों ने इन सभी स्थानों पर शिवलिंग की स्थापना की और भगवान शिव की पूजा की। तुंगनाथ में, जहां शिव की भुजाएं प्रकट हुईं, वहीं इस मंदिर का निर्माण हुआ। इस प्रकार तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) शिव के पांच मुख्य मंदिरों (पंच केदार) में से एक बन गया। कहा जाता है कि भगवान शिव ने पांडवों के तप और समर्पण से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और उनके पापों से मुक्ति का आशीर्वाद दिया। इस तरह, तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) का धार्मिक महत्व और पौराणिक कथा महाभारत और शिव की भक्ति से गहरे रूप से जुड़ी हुई है। इस कथा के माध्यम से तुंगनाथ मंदिर न केवल एक पवित्र धार्मिक स्थल है, बल्कि यह आत्म-शुद्धि, तप और भक्ति के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।
Importance of Tunganath Temple in Hindi (तुंगनाथ मंदिर का महत्व)
तुंगनाथ मंदिर का धार्मिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। यह मंदिर न केवल भगवान शिव की उपासना के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी भौगोलिक स्थिति और पौराणिक महत्व के कारण भी इसे एक विशेष स्थान प्राप्त है।
तुंगनाथ मंदिर का धार्मिक महत्व
- पंच केदार में से एक: तुंगनाथ मंदिर पंच केदार में से एक है, जो कि भगवान शिव के पाँच प्रमुख मंदिरों का समूह है। यह स्थान उन पाँच स्थानों में से एक है जहाँ भगवान शिव ने महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों को दर्शन दिए थे। पंच केदारों की यात्रा को धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक पवित्र माना जाता है।
- शिव की भुजाएं: तुंगनाथ मंदिर में भगवान शिव की भुजाओं की पूजा होती है, जो पांडवों द्वारा खोजे गए थे। यहाँ पूजा करने से भक्तों को उनके पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
- आध्यात्मिक केंद्र: तुंगनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र है, जहाँ लोग ध्यान, योग और आत्म-चिंतन के लिए आते हैं। मंदिर की ऊँचाई और प्राकृतिक सुंदरता इसे ध्यान और साधना के लिए उपयुक्त स्थान बनाती है।
तुंगनाथ मंदिर का सांस्कृतिक महत्व
- स्थानीय संस्कृति: तुंगनाथ मंदिर स्थानीय गढ़वाली संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ पर आयोजित होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और त्यौहार स्थानीय रीति-रिवाजों और परंपराओं को जीवित रखते हैं।
- पर्यटन का केंद्र: तुंगनाथ मंदिर के पास स्थित चंद्रशिला चोटी और आसपास की हिमालयी पहाड़ियाँ पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। यहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं, जिससे स्थानीय समुदायों की आजीविका को भी बढ़ावा मिलता है।
तुंगनाथ मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
- प्राचीन मंदिर: तुंगनाथ मंदिर का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और इसका निर्माण पांडवों द्वारा किया गया माना जाता है। यह मंदिर उत्तर भारतीय नागर शैली में बना हुआ है, जो प्राचीन भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
- पांडवों से संबंध: तुंगनाथ मंदिर का पौराणिक इतिहास महाभारत और पांडवों से जुड़ा हुआ है, जो इसे ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाता है।
तुंगनाथ मंदिर का प्राकृतिक महत्व
- हिमालय की गोद में: तुंगनाथ मंदिर लगभग 3,680 मीटर (12,073 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है।
Construction of Tunganath Temple in Hindi (तुंगनाथ मंदिर का निर्माण)
तुंगनाथ मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में हुआ था। और इसे पांडवों द्वारा महाभारत काल के बाद बनाया गया माना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। और इसकी स्थापना से जुड़ी कथा महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों द्वारा किए गए पश्चाताप और प्रायश्चित से संबंधित है। तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) का निर्माण पांडवों ने तब किया, जब वे अपने पापों के प्रायश्चित के लिए भगवान शिव की खोज कर रहे थे। शिव उनसे मिलने से बचने के लिए एक बैल का रूप धारण करके भाग गए और पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में प्रकट हुए। तुंगनाथ वह स्थान है जहाँ शिव की भुजाएं प्रकट हुईं, और पांडवों ने इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की और मंदिर का निर्माण किया।
तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) नागर शैली की वास्तुकला में बना है, जो उत्तर भारतीय मंदिर स्थापत्य शैली की एक प्रमुख विधा है। इस शैली में पत्थरों से निर्मित मंदिर होते हैं, जिनका शिखर (मंदिर का ऊपरी हिस्सा) शंक्वाकार होता है।
- मंदिर का शिखर: तुंगनाथ मंदिर का शिखर पारंपरिक नागर शैली का है, जो ऊपर की ओर संकरा होता गया है। इसमें कई छोटे-छोटे शिखर भी होते हैं, जो मुख्य शिखर के चारों ओर बने होते हैं।
- गर्भगृह: मंदिर का गर्भगृह वह स्थान है जहाँ शिवलिंग स्थापित है। यह हिस्सा मंदिर का सबसे पवित्र भाग है और यहाँ केवल पुजारी को ही प्रवेश की अनुमति होती है।
- मंडप: गर्भगृह के सामने एक छोटा मंडप (हॉल) होता है, जहाँ श्रद्धालु पूजा और अर्चना करते हैं।
तुंगनाथ मंदिर की स्थिति और इसकी ऊँचाई इसे एक प्राकृतिक चमत्कार भी बनाती है। मंदिर हिमालय की गोद में स्थित है, और इसके चारों ओर बर्फ से ढकी चोटियाँ और हरे-भरे जंगल हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी विशेष है। मंदिर के निर्माण के बाद से ही इसका संरक्षण और रखरखाव स्थानीय समुदायों द्वारा किया जाता रहा है। इस प्राचीन मंदिर की संरचना आज भी अच्छी स्थिति में है, और श्रद्धालु यहाँ नियमित रूप से पूजा-अर्चना करने आते हैं। तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) का निर्माण न केवल धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला का भी एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसका निर्माण स्थान और पृष्ठभूमि इसे विशेष रूप से पवित्र और अद्वितीय बनाती है।
How to reach Tungnath Temple in Hindi (तुंगनाथ मंदिर तक कैसे पहुंचे)
तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) तक पहुँचने के लिए आपको कुछ चरणों का पालन करना होगा, जिसमें सड़क मार्ग और फिर एक ट्रेक शामिल है। यहाँ पूरी यात्रा का विवरण दिया गया है।
1. ऋषिकेश/हरिद्वार से चोपता तक
- ऋषिकेश/हरिद्वार: तुंगनाथ मंदिर की यात्रा के लिए पहले आपको ऋषिकेश या हरिद्वार पहुँचना होगा, जो भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
- सड़क मार्ग: आप दिल्ली, देहरादून, या अन्य शहरों से बस या टैक्सी द्वारा ऋषिकेश या हरिद्वार पहुँच सकते हैं।
- रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार है।
- वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून है, जो ऋषिकेश से करीब 20 किमी दूर है।
- चोपता: ऋषिकेश/हरिद्वार से आपको चोपता तक का सफर तय करना होगा।
- सड़क मार्ग: ऋषिकेश से चोपता की दूरी लगभग 200 किलोमीटर है, और आप टैक्सी या बस से जा सकते हैं। चोपता के रास्ते में देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, और उखीमठ जैसे स्थान आते हैं।
- चोपता को मिनी स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है, क्योंकि यह हरे-भरे घास के मैदानों और सुंदर दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है।
2. चोपता से तुंगनाथ मंदिर तक ट्रेक
- चोपता से तुंगनाथ ट्रेक: चोपता से तुंगनाथ मंदिर तक की दूरी लगभग 4 किलोमीटर है, जो कि एक ट्रेक के रूप में पूरी की जाती है।
- यह ट्रेक मध्यम कठिनाई स्तर का है और इसमें लगभग 3-4 घंटे लगते हैं।
- ट्रेक के दौरान आप बर्फ से ढके पहाड़ों, घने जंगलों, और प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।
3. तुंगनाथ से चंद्रशिला ट्रेक (वैकल्पिक)
- चंद्रशिला शिखर: तुंगनाथ मंदिर से आगे, चंद्रशिला शिखर के लिए एक अतिरिक्त 1.5 किलोमीटर की ट्रेक होती है। चंद्रशिला शिखर से हिमालय के 360 डिग्री दृश्य दिखाई देते हैं, जो अद्वितीय होते हैं।
How to reach Tunganath from Kedarnath (केदारनाथ से तुंगनाथ कैसे पहुंचे)
केदारनाथ से तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) तक यात्रा करने के लिए कोई सीधा रास्ता नहीं है, इसलिए आपको कुछ परिवहन विकल्पों और मार्गों का उपयोग करना होगा। यहाँ एक सामान्य यात्रा मार्ग है।
- केदारनाथ से रुद्रप्रयाग: पहले, आपको केदारनाथ से रुद्रप्रयाग पहुंचना होगा। यह यात्रा लगभग 160 किलोमीटर (100 मील) की होती है। रुद्रप्रयाग तक पहुँचने के लिए आप बस या टैक्सी का उपयोग कर सकते हैं।
- रुद्रप्रयाग से चोपता: रुद्रप्रयाग से आपको चोपता जाना होगा, जो कि तुंगनाथ मंदिर के सबसे नजदीकी स्थानों में से एक है। चोपता पहुँचने के लिए भी बस या टैक्सी का उपयोग किया जा सकता है। चोपता तक की यात्रा के दौरान आप प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं।
- चोपता से तुंगनाथ: चोपता से तुंगनाथ तक पहुँचने के लिए आपको एक ट्रेक करना होगा। यह ट्रेक लगभग 3.5 किलोमीटर (2.2 मील) लंबा है और इसे पैदल ही पूरा करना होता है। ट्रेक की शुरुआत चोपता से होती है और यह मार्ग कच्चा और पहाड़ी होता है, लेकिन यात्रा के दौरान आपको अद्भुत दृश्य और प्राकृतिक सौंदर्य देखने को मिलता है।
Best time to visit Tungnath Temple in Hindi (तुंगनाथ मंदिर में जाने का सबसे अच्छा समय)
तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अप्रैल से नवंबर के बीच का माना जाता है। इस दौरान मौसम अनुकूल रहता है, और आप ट्रेकिंग का आनंद भी ले सकते हैं।
- अप्रैल से जून (गर्मियाँ):
- मौसम: यह समय ट्रेकिंग के लिए सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि मौसम सुहावना और ठंडा रहता है। दिन में तापमान 10-20 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है।
- प्राकृतिक सौंदर्य: इस समय चारों ओर हरियाली और फूलों की बहार होती है, जिससे यात्रा अत्यंत मनोहारी हो जाती है।
- जुलाई से सितंबर (मानसून):
- मौसम: इस दौरान मानसून के कारण बारिश हो सकती है, जिससे ट्रेकिंग रास्ते फिसलन भरे हो सकते हैं।
- प्राकृतिक सौंदर्य: बारिश के कारण क्षेत्र में हरियाली और नदियों का सौंदर्य बढ़ जाता है, लेकिन फिसलन के कारण यात्रा थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
- ध्यान देने योग्य बातें: मानसून के दौरान ट्रेकिंग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि रास्तों पर कीचड़ और फिसलन हो सकती है।
- सितंबर से नवंबर (शरद ऋतु):
- मौसम: इस समय मौसम साफ और सुखद होता है, और ट्रेकिंग के लिए यह समय भी बहुत अच्छा है। तापमान दिन में 5-15 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है।
- दृश्यता: इस समय आसमान साफ रहता है, जिससे हिमालय के शानदार दृश्य देखे जा सकते हैं।
- दिसंबर से मार्च (सर्दियाँ):
- मौसम: इस दौरान तुंगनाथ मंदिर बंद रहता है और पूरे क्षेत्र में भारी बर्फबारी होती है।
- बर्फबारी: ट्रेक बर्फ से ढका रहता है और यह केवल अनुभवी ट्रेकर्स के लिए ही संभव होता है। मंदिर की मूर्ति को भी सर्दियों के दौरान नीचे मुकुता गांव में ले जाया जाता है।
- विशेष नोट: सर्दियों में मंदिर बंद रहता है, इसलिए यात्रा की योजना इस समय न बनाएं।
सारांश: अप्रैल से जून और सितंबर से नवंबर के बीच का समय तुंगनाथ मंदिर की यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त है, जब मौसम सुहावना रहता है और आप ट्रेकिंग का पूरा आनंद ले सकते हैं।
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Q&A
1. तुंगनाथ मंदिर की पैदल चढ़ाई कितनी है?
तुंगनाथ मंदिर की पैदल चढ़ाई लगभग 4 किलोमीटर की होती है। यह चढ़ाई चोपता से शुरू होती है, चढ़ाई के दौरान रास्ता कठिनाई भरा है, लेकिन मार्ग की प्राकृतिक सुंदरता और आसपास के पर्वतीय दृश्य इसे एक यादगार अनुभव बनाते हैं। मंदिर समुद्र तल से लगभग 3,680 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
2. तुंगनाथ मंदिर में किसकी पूजा होती है?
तुंगनाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा होती है। यह मंदिर पंच केदारों में से एक है जहां उनकी बाहुओं की पूजा होती है। यह मंदिर दुनिया का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर है, जो समुद्र तल से लगभग 3,680 मीटर (12,073 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है।
3. क्या तुंगनाथ और केदारनाथ एक ही हैं?
तुंगनाथ और केदारनाथ दो अलग-अलग तीर्थ स्थल हैं, लेकिन दोनों उत्तराखंड राज्य में स्थित हैं और पवित्र हिमालय पर्वतों में स्थित हैं। ये दोनों स्थान भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिरों के लिए जाने जाते हैं और पंच केदार के पांच महत्वपूर्ण मंदिरों में से हैं।
4. तुंगनाथ मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?
यह मंदिर विश्व का सबसे ऊंचा मंदिर है जो समुद्र तल से लगभग 3,680 मीटर (12,073 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। दूसरा यह मंदिर पंच केदार में से एक है। जहा भगवान शिव के बाजू (भुजा) की पूजा होती है। बाकि यह मंदिर अपनी पौराणिक कथा, महत्व, प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक शांति के लिए बहुत प्रसिद्ध है।
5. तुंगनाथ मंदिर कब बंद होता है?
तुंगनाथ मंदिर आम तौर पर मोनसून के मौसम में बंद रहता है, जो आमतौर पर अप्रैल से नवंबर तक का होता है। विशिष्ट रूप से, मंदिर मई के अंत से शुरू होता है और अक्टूबर के अंत तक खुला रहता है।
दोस्तों हम उम्मीद करते है कि आपको तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) की पूरी जानकारी के बारे में पढ़कर आनंद आया होगा।
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