Bhadrakali Shaktipeeth Temple: नमस्कार दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम आपको हरियाणा के कुरुक्षेत्र में स्थित भद्रकाली शक्तिपीठ या सावित्री देवी मंदिर की सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है। यदि आप भद्रकाली देवी मदिर की सम्पूर्ण जानकारी जानना चाहते है तो इस आर्टिकल को अंत तक जरुर पढ़े।
भद्रकाली मंदिर का इतिहास (Bhadrakali Temple History in Hindi)
“भद्रकाली मंदिर” का यह “शक्तिपीठ मंदिर” भारत में हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र में स्थित देवी सती के 51 शक्तिपीठो में से एक माना जाता है। भद्रकाली माता का यह प्राचीन मंदिर माता सती के शक्ति रूप को समर्पित है। इस स्थान पर देवी सती का दायां पैर अर्थात घुटने से नीचे का भाग गिरा था। इस मंदिर के मुख्य गर्भ ग्रह में माता भद्रकाली की प्रतिमा स्थापित है। जिसको “सावित्री देवी” के नाम से भी जाना जाता है। माता के दोनों तरफ उनकी सवारी शेर विराजमान है। और सामने ही एक माता का पैर अथवा घुटने के निचे हिस्से की प्रतिमा भी स्थापित है। यहाँ की शक्ति रूप को सावित्री देवी तथा भैरव को स्थनु कहा गया हैं। हिन्दू धर्म के ग्रंथो में वामन पुराण और ब्रह्मपुराण के अनुसार चार कुपो का वर्णन आता है। जिसमें शामिल चंद्र कूप, विष्णु कूप, रुद्र कूप व देवी कूप हैं। कुरुक्षेत्र में स्थित देवी कूप भद्रकाली शक्तिपीठ का इतिहास दक्ष पुत्री सती देवी से जुड़ा हुआ है।
भद्रकाली मंदिर की पौराणिक कथा (Bhadrakali Shaktipeeth Temple Story in Hindi)
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सती राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। जिनका का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था। एक बार दक्ष प्रजापति ने अपने निवास स्थान कनखल हरिद्वार में एक भव्य यज्ञ का आयोजन कराया और इस भव्य यज्ञ में दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को छोड़कर बाकि सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया। जब माता सती को पता चला की मेरे पिता ने इस भव्य यज्ञ मेरे पति को आमंत्रित नहीं किया। अपने पिता द्वारा पति का यह अपमान देख माता सती ने उसी यज्ञ में कूदकर अपने प्राणो की आहुति देदी थी।
यह सुचना सुनकर भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए अपने अर्ध-देवता वीरभद्र और शिव गणों को कनखल युद्ध करने के लिए भेजा। वीरभद्र ने जाकर उस भव्य यज्ञ को नस्ट कर राजा दक्ष का सिर काट दिया। सभी सभी देवताओं के अनुरोध करने पर पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को दोबारा जीवन दान देकर उस पर बकरे का सिर लगा दिया। यह देख राजा दक्ष को अपनी गलतियों का पश्च्याताप हुआ और भगवान शिव से हाथ जोड़कर क्षमा मांगी। तभी भगवान शिव ने सभी देवी देवताओं के सामने यह घोषणा कि हर साल सावन माह, में कनखल में निवास करूँगा।
भगवान शिव अत्यधिक क्रोधित होते हुए सती के मृत शरीर उठाकर पुरे ब्रह्माण के चक्कर लगाने लगे। तब पश्चात भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित करा था। जिस कारन से सती के जले हुए शरीर के हिस्से पृत्वी के अलग-अलग स्थानों पर जा गिरे। जहा-जहा पर सती के शरीर के भाग गिरे थे वे सभी स्थान “शक्तिपीठ” बन गए। जहा पर भद्रकाली देवी का मंदिर है। इस स्थान पर माता सती का दायां पैर अर्थात घुटने से नीचे का भाग गिरा था। इसीलिए इस मंदिर की गणना 51 शक्तिपीठो में की जाती है। भक्त यहां पर आकर भद्रकाली देवी के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है।
ऐसी मान्यता है की भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर पांडव अर्जुन ने माता भद्रकाली की तपस्या की। और माँ से कहा था की अगर महाभारत के युद्ध में मेरी विजय हुई तो में शक्तिपीठ की सेवा के लिए घोड़े चढ़ाने आऊंगा। युद्ध में विजय प्राप्त कर पांडवो ने ऐसा ही किया। भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर यहां अपनी इच्छा अनुसार सोने, चांदी व मिट्टी के घोड़े चढ़ाते हैं। मंदिर के बाहर एक देवी तालाब भी स्थित है। तालाब के पास में ही राजा दक्षेस्वर महादेव का मंदिर है। पौराणिकता यह भी कहती है कि भगवान श्रीकृष्ण व बलराम के मुंडन संस्कार इसी स्थान पर हुए थे।
दूसरी ओर इस मंदिर की ऐसी भी मान्यता है की रक्षाबंधन वाले के दिन श्रद्धालु अपनी रक्षा के लिए माता को राखी या रक्षा सूत्र बांधते हैं। हिन्दू विशेष पर्व जैसे चैत्र व आश्विन के नवरात्र इस मंदिर में बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं।
दोस्तों हम उम्मीद करते है कि आपको Bhadrakali Shaktipeeth Temple के बारे में पढ़कर आनंद आया होगा।
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