Ambaji Mata Temple History in Hindi | अम्बाजी माता मंदिर जहा कोई मूर्ति नहीं है

Ambaji Mata Temple History in Hindi: अम्बाजी माता मंदिर भारत में गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित है। देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक माँ अम्बाजी का यह प्राचीन मंदिर माता सती के शक्ति रूप को समर्पित है। जिसमे माता की कोई भी प्रतिमा विराजमान नहीं है।

अम्बाजी माता मंदिर का इतिहास (History of Ambaji Mata Temple in Hindi)

अम्बाजी के इस मंदिर में प्रतिमा की पूजा नहीं की जाती है। माता के रूप में यहां पर केवल एक पवित्र श्रीयंत्र स्थापित है। जिसकी पूजा मुख्य रूप में की जाती है। ऐसी मान्यता है की इस यंत्र को कोई भी अपनी सीधी आंखों से देख नहीं सकता। इस स्थान पर माता सती का ह्रदय गिरा था। अम्बाजी माता की मूल पीठस्थल कस्बे में गब्बर पर्वत के शिखर पर है।

हिन्दू विशेष पर्व जैसे नवरात्री और भदर्वी पूर्णिमा के दिन यहाँ पर श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ उमड़ती है। उस दौरान यहां पर अम्बा जी का बड़ा मेला लगता है। जिसमे लगभग 30 लाख यात्री पहुंचते है। यह प्राचीन मंदिर 1200 साल से अधिक पुराना है। अगर मंदिर के शिखर की बात करे तो 103 फुट ऊचे इस शिखर में 358 स्वर्ण कलश स्थापित हैं। दीपावली के समय माँ अम्बाजी के मंदिर को लड़ियो और फूलो से सजाया जाता है।

अम्बाजी माता मंदिर की पौराणिक कथा (Ambaji Mata Temple Story in Hindi)

पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सती राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। जिनका का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था। एक बार दक्ष प्रजापति ने अपने निवास स्थान कनखल हरिद्वार में एक भव्य यज्ञ का आयोजन कराया। और इस भव्य यज्ञ में दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को छोड़कर बाकि सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया। जब माता सती को पता चला की मेरे पिता ने इस भव्य यज्ञ मेरे पति को आमंत्रित नहीं किया। अपने पिता द्वारा पति का यह अपमान देख माता सती ने उसी यज्ञ में कूदकर अपने प्राणो की आहुति देदी थी।

यह सुचना सुनकर भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए तभी उन्होंने अपने अर्ध-देवता वीरभद्र को अन्य शिव गणों के साथ कनखल भेजा। वीरभद्र ने उस यज्ञ को नस्ट कर राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया। फिर सभी देवताओं के अनुरोध करने पर पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को दोबारा जीवन दान देकर उस पर बकरे का सिर लगा दिया। यह देख राजा दक्ष को अपनी गलतियों का पश्च्याताप हुआ और भगवान शिव से हाथ जोड़कर क्षमा मांगी।

भगवान शिव अत्यधिक क्रोधित होते हुए सती के मृत शरीर उठाकर पुरे ब्रह्माण के चक्कर लगाने लगे। तब पश्चात भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित करा था। जिस कारन से सती के जले हुए शरीर के हिस्से पृत्वी के अलग-अलग स्थानों पर जा गिरे। जहा-जहा पर सती के शरीर के भाग गिरे थे वे सभी स्थान “शक्तिपीठ” बन गए। जहा पर अम्बाजी माता का मंदिर है उस स्थान पर माता सती का ह्रदय गिरा था  इसीलिए इस मंदिर की गणना 51 शक्तिपीठो में की जाती है। भक्त यहां पर आकर माँ अम्बाजी के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है ।

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अम्बाजी मंदिर की मान्यता (Secrets of Ambaji temple in Hindi)

माँ अम्बाजी का यह मंदिर वैसे तो शक्ति पीठ कहा जाता है। लेकिन इस मंदिर की मान्यताये बाकि मंदिरो से कुछ अलग हटकर है। सबसे पहले तो इस मंदिर में माँ की एक भी प्रतिमा और कोई पिंडी विराजमान नहीं है। यहां पर केवल माँ अम्बा की पूजा श्रीयंत्र की आराधना से होती है। कहते है की इस श्रीयंत्र को कोई भी मनुष्य अपनी सीधी आँखों से नहीं देख सकता। देश विदेश आये श्रद्धालु माँ अम्बाजी की पूजा आराधना श्रीयंत्र को देखकर ही करते है। इस स्थान पर माता सती का हृदय गिरा था।

गब्बर पहाड की महिमा (Glory of Gabbar Hill in Hindi)

अम्बाजी मंदिर से 3 km की दूरी पर स्थित गब्बर पहाड पर माँ अम्बाजी के पद चिन्ह और रथ चिन्ह विख्यात है। मंदिर में आने वाले भक्त गब्बर पहाड पर जाकर माँ के पैरो के चिंह और माँ के रथ के निशान देखने जरुर देखते है।

अम्बाजी मंदिर कैसे पहुँचें – How to reach Ambaji Temple in Hindi)

अम्बाजी मंदिर पहुंचने के लिए आपको गुजरात आना होगा। जो की वायु, सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है। मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा के करीब स्थित है। अम्बाजी मंदिर से 45 km दूर और सबसे नजदीक माउंटआबू स्टेशन पड़ता है। अहमदाबाद से अम्बाजी मंदिर की दुरी 180 km की है।

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