Virbhadra Temple Rishikesh History in hindi | वीरभद्र मंदिर ऋषिकेश उत्तराखंड

Virbhadra Temple Rishikesh: दोस्तों इस लेख में आज हम आपको ऋषिकेश में स्थित एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जो वीरभद्र महादेव के ना से जाना जाता है अपने आप में यह मंदिर कई रहस्य बया करता है. तो चलिए आज इस मंदिर के रहस्यों के बारे में जानते है।

वीरभद्र मंदिर का इतिहास (Virbhadra Temple Rishikesh History in Hindi)

वीरभद्र का यह मंदिर उत्तराखंड राज्य में ऋषिकेश के वीरभद्र टाउन में स्थित है। हिन्दुओं की आस्था जुड़ा यह मंदिर भगवान शिव के स्वरूप वीरभद्र को समर्पित है। 1,300 साल पुराने इस मंदिर में शिवरात्रि के शुभ अवसर पर रात्रि में भोले का जागरण और विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती हैं। और साथ में यहां पर मेले का भी आयोजन होता है। वीरभद्र महादेव के नाम से यह मंदिर प्राचीन सिद्धपीठ कहलाता है।

वीरभद्र मंदिर की कहानी (Virbhadra Temple Story in Hindi)

पौराणिक कथाओं के अनुसार वीरभद्र को भगवान शिव का ही अवतार माना गया है। स्कन्द पुराण में भी इसका उल्लेख है की एक बार राजा दक्ष प्रजापति ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन कराया। और इस भव्य यज्ञ में भगवान शिव को छोड़कर बाकि सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया। जब माता सती को पता चला की मेरे पिता ने इस भव्य यज्ञ मेरे पति को आमंत्रित नहीं किया।

अपने पिता द्वारा पति का यह अपमान देख माता सती ने उसी यज्ञ में कूदकर अपने प्राणो की आहुति देदी थी। यह सुचना सुनकर भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए और अपने बालो की जटा को झटक कर अपने अर्ध-देवता वीरभद्र को उत्पन किया। और वीरभद्र को बाकि शिव गणों के साथ कनखल युद्ध करने के लिए भेजा। वीरभद्र ने जाकर उस भव्य यज्ञ को नस्ट कर राजा दक्ष का सिर काट दिया।

तब सभी देवताओं के अनुरोध करने पर पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को दोबारा जीवन दान देकर उस पर बकरे का सिर लगा दिया। यह देख राजा दक्ष को अपनी गलतियों का पश्च्याताप हुआ और भगवान शिव से हाथ जोड़कर क्षमा मांगी।इसी स्थान पर भगवान शिव ने वीरभद्र को अपने गले से लगाया था। उसके बाद वीरभद्र भगवान शिव के शरीर में ही समा गए थे और एक शिवलिंग के रूप में मंदिर में स्थित है। इसीलिए इस मंदिर को सिद्धपीठ कहा जता है।

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वीरभद्र मंदिर से जुड़े कुछ रहस्य और किवदंतिया (Secrets of Virbhadra temple in hindi)

वीरभद्र मंदिर के मुख्य पुजारी राजेंद्र गिरी ने जो हमे किवदंतिया सुनाई उसे जानकार ऐसा महसूस होता है। की ऐसे ही श्रद्धालुओं के बिच भोलेनाथ के प्रति आस्था बढ़ती है। श्रावन का महीना भोले शंकर का एक विषेश महीना होता है। इसीलिए इस महीने में यहा बहुत अधिक संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। और श्रद्धालु भगवान शिव को दूध, दही, शहद, घी, और जल से उनका अभिषेक कर अपनी मनोकामना की पूर्ति करते है।

कहते की सच्ची श्रद्धा से मांगी कई मनोकामना यहा जल्दी ही पूरी होती है। या खास प्रभु पर खुद घंटियों के बजने का चमत्कार होने की भी श्रद्धालुओं के बिच मान्यता है। और किवदंति तो ये भी है की ऐसे मोको पर यहा देवता भी पूजन करने के लिए आते है। इस मंदिर में घंटी स्वयं बजती है। मंदिर के मुख्य गर्भ ग्रह में वीरभद्र महादेव एक शिवलिंग के रूप में विराजमान है। और शिवलिंग के सामने मंदिर के प्रांगण में  नंदी जी भी विराजमान है।

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वीरभद्र मंदिर कैसे पहुंचे (How to reach Virbhadra Temple in Hindi)

मंदिर हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर ऋषिकेश से 2 km पहले वीरभद्र में स्थित है। जो की रेल और सड़क दोनों मार्ग से जुड़ा हुआ है। पास में ही वीरभद्र रेलवे स्टेशन है। यहां से जॉली ग्रांट हवाई अड्डा 25 km दूर है।

सड़क माध्यम (By Road) – ऋषिकेश हरिद्वार और देहरादून सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है. दिल्ली से लगभग 260 किलोमीटर दूर है। ऋषिकेश आने के लिए रोड ट्रांसपोर्ट रोड कारपोरेशन व निजी बसें चलती हैं।
ट्रेन माध्यम (By Train) – ऋषिकेश में एक रेलवे स्टेशन है जो सीधे हरिद्वार और देहरादून से जुड़ा हुआ है।
वायु माध्यम (By Air) – जोलीग्रांट हवाई अड्डा ऋषिकेश से लगभग 21 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ पहुँचने के बाद आप टैक्सी या बस सेवा का उपयोग कर सकते हैं. जिसमे लगभग 30 मिनट का समय लग सकता है।
निजी वाहन (personal Vehicle) – आप वीरभद्र अपनी खूद की गाड़ी से भी जा सकते हैं।

दोस्तों हम उम्मीद करते है कि आपको Virbhadra Temple Rishikesh के बारे में पढ़कर अच्छा लगा होगा।

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