Rameswaram Jyotirlinga History in Hindi : भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगो में स्थापित रामेश्वरम का यह 11वे ज्योतिर्लिंग माना गया है। इन मंदिरो को ज्योतिर्लिंग इसलिए कहा जाता है कियुँकि भगवान शिव इन स्थानो पर स्वयं प्रकट हुए थे। इसीलिए यह स्थान ज्योतिर्लिंग कहलाते है. इस लेख में आज हम आपको रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है इसे ध्यान से जरूर पढ़े।
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रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास (Rameswaram Jyotirlinga History in Hindi)
यह ज्योतिर्लिंग मंदिर भारत में तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। भारत के चार धामों स्थित इस मंदिर की बनावट एक सुन्दर शंख आकर द्वीप की तरह दिखती है। चेन्नई से लगभग 420 km दूर स्थित यह मंदिर हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी के चारों तरफ से घिरा हुआ है। शास्त्रों के अनुसार ऐसा कहते है की इस पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से सारे पापों से मुक्त होकर सुखों का भोग मिलता है। हिन्दुओं का यह प्राचीन एवं प्रमुख मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। जिसमे शिव की पूजा आराधना रामेश्वरम के रूप में की जाती है।
“रामेश्वरम” का अर्थ होता है “राम और शिव ” यानि भगवान श्री रामचंद्र और भगवान शिव से है। जब श्री रामचंद्र अपनी पत्नी सीता को रावण से छुड़ाने के लिए लंका की और जार रहे थे। तब उन्होंने महासागर तट के इस स्थान पर रेत से बनाकर एक ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। और महायघ कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। तब जाकर उन्होंने लंका पर विजय प्राप्त की थी। जिसे रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग और श्रीरामलिंगेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा (Rameswaram Jyotirlinga Story in Hindi)
मंदिर की पौराणिक कथायो का उल्लेख सीधे रामायण से है। ऐसी मान्यता है की भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्री राम जब सीता को रावण से छुड़ाने के लिए लंका की और जार रहे थे। तब उन्होंने महासागर तट के इस स्थान पर रेत से बनाकर एक शिवलिंग की स्थापना की थी। और माहान ऋषि मुनियो को बुलाकर महायघ कर भगवान शिव की पूजा आराधना की थी। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें लंका में जाने का मार्ग दिखाकर और विजय प्राप्ति का वरदान दिया था।
तपश्चात भगवान श्री राम ने रावण की लंका पर जाने के लिए यहां के महासागर में पत्थरों के पूल का निर्माण कराया था। जिसपर चढ़कर श्री राम और उनकी पूरी वानर सेना लंका में पहुंची और विजय प्राप्त कर इसी पूल से वापस आयी थी। विभीषण के अनुरोध पर भगवान श्री राम ने धनुषकोटि नामक स्थान पर इस पूल को तोड़ दिया था। ऐसा बताया जाता है की आज भी पत्तर से बने इस पूल के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की सरचना (Structure of Rameswaram Jyotirlinga in Hindi)
पुराणों में रामेश्वरम् (रामनाथ) का यह मंदिर उतना पुराना नहीं है। जबकि दक्षिण क्षेत्र के कुछ बने मंदिर डेढ़-दो हजार साल पहले के है और रामेश्वरम् धाम के इस मंदिर को बने अभी आठ सौ वर्ष भी पुरे नहीं हुए है। बल्कि मंदिर के बहुत से भाग पचास-साठ साल पहले ही बने है। रामेश्वरम मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा माना जाता है।
मंदिर के गर्भ-गृह के पास में ही 9 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं जिनको विभीषण द्वारा स्थापित करवाया गया था | परन्तु दूसरी और ऐसा भी कहा जाता है की इनका निर्माण श्रीलंका के राजा पराक्रम बाहु ने सन 1173 में करवाया था | चौकाने वाली बात तो यह है की इस मंदिर में देवी की मूर्ति नहीं रखी गई | जिस वजह से यह मंदिर नि:संगेश्वर कहलाया।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की मान्यता (Recognition of Rameshwaram Jyotirlinga in Hindi)
रामेश्वरम मंदिर के निर्माण के बारे में पुराणों में कई तरीके से उल्लेख किया हुआ है. पौराणिक कथायो का उल्लेख सीधे रामायण से है। ऐसी मान्यता है की भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्री राम जब सीता को रावण से छुड़ाने के लिए लंका की और जार रहे थे। तब उन्होंने महासागर तट के इस स्थान पर रेत से बनाकर एक शिवलिंग की स्थापना की थी। और माहान ऋषि मुनियो को बुलाकर महायघ कर भगवान शिव की पूजा आराधना की थी। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें लंका में जाने का मार्ग दिखाकर और विजय प्राप्ति का वरदान दिया था।
तपश्चात भगवान श्री राम ने रावण की लंका पर जाने के लिए यहां के महासागर में पत्थरों के पूल का निर्माण कराया था। जिसपर चढ़कर श्री राम और उनकी पूरी वानर सेना लंका में पहुंची और विजय प्राप्त कर इसी पूल से वापस आयी थी। विभीषण के अनुरोध पर भगवान श्री राम ने धनुषकोटि नामक स्थान पर इस पूल को तोड़ दिया था। ऐसा बताया जाता है की आज भी पत्तर से बने इस पूल के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का निर्माण (Construction of Rameshwaram Jyotirlinga in Hindi)
15वीं शताब्दी के मुताबिक राजा उडैयान सेतुपति और नागूर निवासी वैश्य ने इस मंदिर के गोपुरम का निर्माण करवाया था ।
16वीं शताब्दी के मुताबिक मंदिर में दक्षिण हिस्से की दीवार का निर्माण तिरुमलय सेतुपति ने करवाया था मंदिर की पौराणिक कथायो का उल्लेख सीधे रामायण से है। ऐसी मान्यता है की भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्री राम जब सीता को रावण से छुड़ाने के लिए लंका की और जार रहे थे। तब उन्होंने महासागर तट के इस स्थान पर रेत से बनाकर एक शिवलिंग की स्थापना की थी। और माहान ऋषि मुनियो को बुलाकर महायघ कर भगवान शिव की पूजा आराधना की थी। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें लंका में जाने का मार्ग दिखाकर और विजय प्राप्ति का वरदान दिया था।
17 वीं शताब्दी के मुताबिक राजा किजहावन सेतुपति और दलवाय सेतुपति ने पूर्वी गोपुरम का आरंभ किया था।
18 वीं शताब्दी के मुताबिक रविविजय सेतुपति ने देवी-देवताओं के लिए गृह और एक मंडप बनवाया। और कुछ वर्षो बाद रामलिंग सेतुपति ने मंदिर के बाहरी परकोटे का निर्माण करवाया था।
19वीं शताब्दी के मुताबिक देवकोट्टई से एक परिवार वालो ने 126 फीट ऊंचा नौ द्वार गोपुरम निर्माण करवाया था और 1947 में इसी परिवार ने महा कुम्भाभिषेक भी करवाया था।
1000 फुट लम्बाई और 650 फुट चौड़ाई के क्षेत्र में फैला यह मन्दिर जिसका प्रवेश द्वार 40 मीटर ऊंचा है। और मंदिर में बेहद सुंदर कलाकृतियां से बने ये खंभे आकर्सन का केंद्र है।
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रामेश्वरम मंदिर खुलने एवं बंद होने का समय (Opening and Closing Timing of Rameshwaram Temple in Hindi)
मंदिर खुलने का समय – सुबह 5 बजे से दोपहर 1.00 बजे तक , शाम 3.00 बजे से रात 9.00 बजे तक।
मंदिर बंद होने का समय – दोपहर 1.00 बजे से शाम 3.00 बजे तक।
हिन्दू धर्म के विशेष पर्व जैसे विजयदशमी, दीपावली और भगवान श्रीराम के जन्मदिन को बड़े धूम धाम से बनाया जाता है।
हिन्दू धर्म के विशेष पर्व जैसे विजयदशमी, दीपावली और भगवान श्रीराम के जन्मदिन को बड़े धूम धाम से बनाया जाता।
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