टपकेश्वर महादेव मंदिर:- टपकेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून क्षेत्र के गड़ी कैंट में टोंस नदी किनारे स्थित है।जिसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। कोरवो और पांडवो के गुरु द्रोणाचार्य ने इसी गुफा में 12 साल तक भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। इस मंदिर के शिवलिंग पर पहाड़ की एक चट्टान से पानी की बुँदे अपने आप टपकती रहती है। टपकेश्वर महादेव मंदिर के पुरे इतिहास और रहस्यों को जानने के लिए इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़े। कियोकि टपकेश्वर महादेव मंदिर एक प्राचीन आदि आनादी कालीन तीर्थ स्थल है। जहा पर भक्त आकर अपनी मनोकामना पूरी करते है।
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टपकेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास
ऐसा माना जाता है की टपकेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास लगभग 6000 साल पुराना है जहा पर भगवान शिव ने देवताओं और ऋषियों को दर्शन दिए थे। यह मंदिर देहरादून से लगभग 5.5 km दूर गड़ी कैंट क्षेत्र में एक टोंस नदी के किनारे स्थित है। टपकेश्वर महादेव मंदिर के इतिहास को हमने एक-एक अनुवाद के साथ समझाया है।
टपकेश्वर महादेव मंदिर में कभी देवताओं ने की थी तपस्या
जिस दौरान देवता लोग अपनी जाग्रित अवस्था में इस देव भूमि पे रमन भ्रमण किया करते थे। उस दौरान देवता लोग इस गुफा में आकर भगवान शिव का ध्यान लगाया करते थे। जब जब भगवान शिव की देवताओं पर कृपा हुई। तब भगवान शिव भू मार्ग से प्रकट हुए और देवताओं को देवेश्वर के रूप में दर्शन दिए। और अनेकों बार उनका कल्याण किया। जो यहां पर साथ नदी बह रही है धारा इसी नदी में पहले देवता लोग स्नान संध्या किया करते थे। और बाद में यहा ध्यान लगाया करते थे। तो उस दौरान इस नदी का नाम भी देव धारा रहा।
टपकेश्वर महादेव मंदिर में ऋषि गुरु द्रोणाचार्य ने की थी तपस्या
देवताओं के बाद इस गुफा में ऋषि लोग आए और ऋषियों ने यहां आकर तपस्या की। क्योंकि उत्तराखंड देवताओं की देव भूमि है और ऋषियों की तपो भूमि है। ऋषियों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ऋषियों को तपेश्वर के रूप में दर्शन दिए और अनेको बार उनका कल्याण किया। उसी दौरान महाभारत के दोनों सेनाओं के कुलगुरु आचार्य द्रोण पूरे हिमालय वर्ष का भ्रमण करते हुए इस गुफा में आए और उन्होंने भी महाभारत से पहले यहां पर 12 साल तपस्या की। उनकी तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और कहां हे द्रोण मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हु जो वरदान मांगना चाहते हो मांगो।
तब द्रोण ने विश्व कल्याण और विश्व शांति हेतु भगवान शिव से धनु विद्या का ज्ञान मांगा। ऐसा कहा जाता है की भगवान शंकर रोज मध्य रात्रि को भू मार्ग से प्रकट हुआ करते थे। और आचार्य द्रोण को अस्त्र-शस्त्र के बारे में यहां रोज एक अध्याय पढ़ाया करते थे। ऐसा करते उन्हें भगवान शंकर से यहां सम्पूर्ण धनुविध्या का ज्ञान प्राप्त हुआ। बाद में उन्होंने कौरव पांडवो को इसी क्षेत्र में प्रशिक्षित किया। जैसे यहां पर पास में एक पुरकुल गांव है उस दौरान वहां पर भी उनकी छावनी लगा करती थी। और वहा पर भी कौरव पांडवों को प्रशिक्षित किया जाता था।
टपकेश्वर महादेव मंदिर की गुफा में माता कृपी ने की थी भगवान शिव की तपस्या
उस दौरान जब द्रोण साय कालीन के समय गुफा में आया करते थे। तो देखा करते थे की उनकी पत्नी कृपी बड़ी उदास और नाराज रहा करती थी। क्योंकि दिन भर द्रोण बाहर रहा करते थे मां कृपी गुफा में अकेले उदास रहा करती थी। तो द्रोण ने अपनी पत्नी से उनकी उदासी का कारण पूछा तो उन्होंने कहा की हे स्वामी आपने 12 साल तक भगवान शिव की कठोर तपस्या की और आपको भगवान शिव के दर्शन भी हुए और उनसे आपको विश्व कल्याण और विश्व शांति का वरदान भी मिला जिससे अवश्य विश्व का कल्याण होगा विश्व में शांति स्थापित होगी। लेकिन कृपा कर स्वामी मुझे ये बताइये। मेरा कल्याण कब होगा और मुझे शांति कैसे प्राप्त होगी।
तब द्रोण अपनी पत्नी कृपी से बोले हे प्रिय मुझे समझ में नहीं आया। तुम कहना क्या चाहती हो जो कहना है मुझसे साफ़ साफ़ बोलो। तब माता कृपी ने कहा की हे स्वामी हर एक स्त्री की इच्छा होती है माँ बनना मुझे ये सुख कब प्राप्त होगा। कब मुझे पुत्र की प्राप्ति होगी। क्योंकि जब तक मुझे पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी तब तक न मेरा कल्याण होगा और नही मुझे शांति मिलेगी। द्रोण अपनी पत्नी से बोले हे प्रिय हमारे भाग्य में संतान का योग नहीं है। लेकिन अगर भगवान शिव की कृपा हो तो असंभव से भी संभव हो सकता है। फिर माता कृपी ने यहां भगवान शिव की तपस्या की और उनकी तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए। पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
टपकेश्वर महादेव मंदिर की गुफा में अश्वत्थामा का जन्म हुआ था
पुरे 9 माह बाद इसी गुफा में माता कृपी के गर्भ से अश्वत्थामा का जन्म हुआ। बच्चे का जन्म हुआ लेकिन माता कृपी किसी कारन वश अपना दूध नहीं पीला पायी। तो चावल पकाकर उसके ऊपर का मांड उतारकर पेड़ के पत्तों से उसे पिलाया करती थी। धीरे-धीरे बच्चा चलने फिरने लगा उन हालातो से बहार निकल गया। आगे चलके ऋषि कुमार लोगो की जो संतान थी तो उनके साथ अश्वत्थामा की मित्रता हुई। क्योंकि वो भी गुफा में जल चढाने के लिए आया करते थे। एक दिन अश्वत्थामा ऋषि कुमार के बच्चो के साथ खेलने के लिए ऊपर उनके आश्रम में चला गया। अश्वत्थामा ने देखा सभी बच्चे अपनी-अपनी माँ की गोद में बैठे है और अपनी माँ का दूध पान कर रहे है। ये द्रश्य अश्वत्थामा ने पहली बार देखा था। तो उसने ऋषियो से पुछा की ये सब अपनी-अपनी माँ की गोद में बैठकर क्या पी रहे है। मेरी साथ खेलने क्यों नहीं आ रहे है।
गुरु द्रोणचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को दूध पिने की लालसा कब हुई
ऋषियो ने अश्वत्थामा से कहा की ये बच्चे खेलने की तैयारी कर रहे है। अपनी-अपनी माँता का दूध पान कर रहे है। अश्वत्थामा बोले ये दूध क्या होता है। ऋषि बोले बीटा ये एक प्रकार का पदार्थ होता है। जो पीने में मीठा होता है और यह माँ से या फिर गाय से प्राप्त होता है। और इसके पिने से भूख प्यास मिट जाती है। वहा और भी ऋषि लोग थे उन्होंने कहा कि हम आप सब जानते हैं कि आज तक अश्वत्थामा ने दूध का स्वाद चखा नहीं है। और तुम दूध का बखान किये जा रहे हो। आज सौभाग्य है की अश्वत्थामा पहली बार हमारे आश्रम आए हैं। इनका स्वागत आज दूध से किया जाए। तो ऋषि कुमार ने एक कटोरा दूध लिया और अपनी गोद में बिठाकर अश्वत्थामा को एक कटोरा दूध पान कराया। अश्वत्थामा को दूध पीने में मीठा मधुर लगा और शक्ति का एहसास भी होने लगा। तब से अश्वत्थामा के मन में दूध के प्रति लालसा पैदा हुई कि काश ऐसा दूध मुझे रोज मिले तो कितना अच्छा होगा।
जब साय कालीन अश्वत्थामा गुफा में आए तब उनकी माता ने वही चावल के ऊपर का मांड निकला हुआ पानी अश्वत्थामा के सामने रखा। तो उसे देख अश्वत्थामा ने पीने से मना कर दिया। बोला माँ में आज से इसे नहीं पियूंगा ये दूध नहीं है। तुम मुझे दूध कहकर जो चावल का पानी रोज पिलाती हो यह दूध नहीं है हकीकत में दूध मैं आज ऊपर ऋषि कुमार के यहां पीकर आया हूँ। आप मेरी माता है। उसके बावजूद भी आपने मुझे कभी अपनी गोद में बिठाकर पीठ थपथपा के अपने स्तन से मुझे दुधपान नहीं कराया है। माता कृपी आपने मन में सोचने लगी की हे भगवान मेरी कैसी परीक्षा की घड़ी है। जिस बात का मुझे डर था आज वही हुआ मैं इसे सच बोलूं कि झूठ बोलूं तब उन्होंने अपने पति द्रोण से कहा कि स्वामी अब हमारा बेटा बड़ा हो चुका है। और यह दूध और पानी को जानने लगा है। अब मै इससे अधिक झूठ नहीं बोल सकती हूँ। कृपा करके आप अश्वत्थामा के लिए कहीं से दूध की व्यवस्था करें।
गुरु द्रोणाचार्य ने राजा द्रुपद से मांगी थी गाय
द्रोण बोले है प्रिय जिस दौरान हमने पृथ्वी पर प्रथम बार हिमालय की और तपस्या के लिए प्रस्थान किया था। उसी दौरान आधे रास्ते विदा करते हुए हमारे मित्र सका द्रुपदने हमें वचन दिया था। की तपस्या के दौरान आपको कोई भी जरूरत महसूस हो तो आप मुझे याद करना आपकी सभी जरूरत पूर्ण हो जाएगी। क्योंकी द्रुपद एक संपन्न परिवार से थे। तब द्रोण ने कहा कि प्रिय आज तक तो मैंने उससे कुछ मांगा नहीं लेकिन हकीकत में आज मुझे अश्वत्थामा के लिए गाय की जरूरत महसूस हो रही है।
और अब ऐसा सुनने में भी आया हैं की द्रुपद अब राजा बन चुका है। तो मैं इसी बहाने जाता हूं और वहां जाकर उसे राजा अभिषेक उपलक्ष में बधाई भी दे देता हूं। और एक गाय भी मांग लेता हूं। उन्हें वहा जाकर द्रुपद को राजा बनने की बधाई दी और उनसे एक गाय की मांग की। तब द्रुपद को राजा बनने पर अभिमान हुआ था। तब उन्होंने द्रोण से कहा कि द्रोण तुम कहां भिक्षित ब्राह्मण और हम कहां राजा। अरे लेन देन तो बराबरी वालों के साथ होती है। द्रुपद ने द्रोण को गाय देने से मन कर दिया और ना ही उनका उचित सम्मान सत्कार किया।
अश्वत्थामा ने 6 माह तक एक पाँव पर खड़े होकर की थी भगवान शिव की तपस्या
द्रोण निरास्त होते हुए अपनी गुफा में आते है। अभी एक आकाशवाणी हुई की हे द्रोण तुम निराश ना हो अश्वत्थामा भगवान शंकर का दिया हुआ प्रसाद है। उसकी रक्षा सयम शंकर भगवान करेंगे। तुम अश्वत्थामा से कहो कि वह भगवान शिव की तपस्या करें। तब अश्वत्थामा ने एक पांव के बल पर खड़े होकर यहां भगवान शिव की तपस्या आरंभ की। और कहा की हे भगवन जब तक मुझे आपके दर्शन नहीं होंगे तब तक मै यहां से हटूंगा नहीं। और जब तक मुझे दूध प्राप्त नहीं होगा मै अपना एक पाँव धरती पर रखूँगा नहीं।
ऐसे करके अश्वत्थामा ने अपने एक पांव के बल पर खड़े होकर 6 माह तक तपस्या की और पूर्णमासी पर उनकी तपस्या पूर्ण हुई। और भगवान शिव भू मार्ग से प्रकट हुए और उन्होंने अश्वत्थामा को पूर्ण रूप से साक्षात दर्शन दिए देखते-देखते गुफा ने गाय के थन का आकार लिया। और वहीं से दूध की धारा आई और वहीं दूध अश्वत्थामा ने पीया और अपनी भूख प्यास मिटाई। और उसी क्षण उन्हें अजर अमृता का वरदान भी भगवान शंकर से यही प्राप्त हुआ। बाद में ये दूध का सिलसिला कलयुग तक चलता रहा। तब तक यह शिवलिंग दूधेश्वर के नाम से विख्यात रहा।
कलयुग के लगते ही टपकेश्वर महादेव मंदिर में दूध पानी में बदल गया
कलयुग के लगते ही उस दूध का गलत इस्तेमाल होना और भगवान शंकर का नाराज होना। वह दूध पानी के रूप मै बदल गया। तब से लेकर अब तक यहां निरंतर जल की बुँदे टपकती रहती है। और भगवान शिव का अखंड अभिषेक होता रहता है। द्रोण को भगवान शिव का ही आशीर्वाद था कि द्रोण कलयुग में यह स्थान तुम्हारे नाम से जाना जाएगा। सबसे पहले भक्त लोग तुम्हें जानेंगे उसके बाद मुझे जानेंगे। तो जो भी भक्त देहरादून के इस मंदिर मै आता है वो सबसे पहले द्रोण नगरी मै आता है। उसके बाद द्रोण गुफा में आता है। और उसे बाद में भगवान शिव के शिवलिंग के दर्शन करता है। जिसके ऊपर आज भी गुफा से प्रकृतिक जल की धारा निरंतर टपकती रहती है।
टपकेश्वर महादेव मंदिर में कैसे पहुंचे
अगर आप टपकेश्वर महादेव मंदिर आना चाहते है। तो सबसे पहले आपको देहरादून आना होगा जो सड़क मार्ग, रेल मार्ग, और वायु मार्ग इन तीनो से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग : – अगर आप सड़क मार्ग के द्वारा आना चाहते है तो सबसे पहले आपको देहरादून के बस अड्डे ISBT आना होगा जो दिल्ली, चंडीगढ़, ऋषिकेश, हरिद्वार से डायरेक्ट जुड़ा हुआ है। ISBT से टपकेश्वर महादेव मंदिर की दुरी लगभग 9.5 किलोमीटर की है। ISBT से आपको टपकेश्वर महादेव मंदिर Tapkeshwar Mahadev Mandir के लिए डायरेक्ट ऑटो या टैक्सी मिल जाएगी। आप चाहे तो ISBT से प्राइवेट बस में बैठकर घड़ी केंट तक पहुंच सकते है। वहा से कुछ ही दुरी पर टपकेश्वर महादेव का मंदिर है।
रेल मार्ग :- अगर आप रेल मार्ग के द्वारा आना चाहते है तो सबसे पहले आपको देहरादून के रेलवे स्टेशन आना होगा। जो दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़, ऋषिकेश, हरिद्वार से डायरेक्ट जुड़ा हुआ है। देहरादून रेलवे स्टेशन से टपकेश्वर महादेव मंदिर की दुरी 8 लगभग किलोमीटर की है। रेलवे स्टेशन से आपको टपकेश्वर महादेव मंदिर Tapkeshwar Mahadev Mandir के लिए डायरेक्ट ऑटो या टैक्सी मिल जाएगी। आप चाहे तो रेलवे स्टेशन से से प्राइवेट बस में बैठकर घड़ी केंट तक पहुंच सकते है। वहा से कुछ ही दुरी पर टपकेश्वर महादेव का मंदिर है।
वायु मार्ग:- अगर आप हवाई जहाज के जरिये देहरादून आना चाहते है। तो सबसे पहले आपको जोली ग्रांट देहरादून के एयरपोर्ट आना होगा जहा से डायरेक्ट दिल्ली, मुंबई, जयपुर, चंडीगढ़के लिए फ्लाइट चलती है। जोली ग्रांट एयरपोर्ट से टपकेश्वर महादेव मंदिर Tapkeshwar Mahadev Mandir की दुरी लगभग किलोमीटर 35 की है। जो थोड़ा ज्यादा है। आपको वहा से देहरादून ISBT के लिए बस मिल जाएगी आप चाहे तो वहा से टपकेश्वर महादेव मंदिर के लिए डायरेक्ट टैक्सी भी बुक कर सकते है।
टपकेश्वर महादेव मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?
- टपकेश्वर महादेव मंदिर की ऐसी पौराणिक मान्यता है की आदिकाल में भोले शंकर ने यहां देवेश्वर के रूप में दर्शन दिए थे। इस मंदिर के शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदें अपने आप टपकती रहती हैं।
टपकेश्वर महादेव मंदिर में कौन सी नदी बहती है?
- टपकेश महादेव मंदिर में टोंस नदी बहती है। जिसको आदिकाल के समय तमसा नदी के नाम से भी जाना जाता था।
टपकेश महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी कौन है?
- टपकेश महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी श्री भारा गिरि जी है।
टपकेश्वर महादेव मंदिर किस जगह स्थित है?
- टपकेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून बस स्टैंड से लगभग 5.5 किलोमीटर दूर घडी केंट क्षेत्र में स्थित है।
टपकेश्वर महादेव मंदिर में कितने शिवलिंग है?
- टपकेश्वर महादेव मंदिर में 2 शिवलिंग है जो स्वयं प्रकट हुए थे।
टपकेश्वर महादेव मंदिर में किस भगवान की पूजा की जाती है?
- टपकेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव के शिवलिंग की पूजा की जाती है।
टपकेश्वर महादेव मंदिर जाने के लिए कितनी सिडिया निचे उतरना होता है?
- टपकेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य गर्भ ग्रह में जाने के लिए आपको मंदिर के मुख्य द्वार से 108 सिडिया निचे उतरकर जाना होगा।
देहरादून में कौन सा मंदिर प्रसिद्ध है?
- देहरादून में भगवान शिव को समर्पित टपकेश्वर महादेव मंदिर सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। यह मंदिर टोंस नदी के तट पर एक प्राकृतिक गुफा के ऊपर बना है, जिसमें मंदिर का मुख्य शिवलिंग है।
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दोस्तों हम उम्मीद करते है कि आपको टपकेश्वर महादेव मंदिर की पूरी जानकारी के बारे में पढ़कर आनंद आया होगा।
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टपकेश्वर महादेव मंदिर की और अधिक जानकारी के लिए आप हमारी इस वीडियो भी देख सकते है। जिसमे हमने पूरी जानकारी दी हुई है।