Naina Devi Temple Nainital: नैना देवी का यह मंदिर उत्तराखंड राज्य के एक खूबसूरत शहर नैनीताल में स्थित है. देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक माँ नैना देवी का यह प्राचीन मंदिर माता सती के शक्ति रूप को समर्पित है. यह भव्य मंदिर नैनीताल मे नैनी झील के किनारे मल्लीताल के पास भक्ति का पवित्र स्थान है।
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नैना देवी मंदिर का इतिहास – History of Naina Devi Temple Nainital in Hindi)
देवी पुराण में नैना देवी का उल्लेख किया हुआ है। कथा के अनुसार ऐसा बताया गया है की सन 1842 में माता भक्त मोती राम शाह ने इस मंदिर की मूर्ति की स्थापना कराई थी। परन्तु सन 1880 में आये भयंकर भूस्खलन के कारन यह मंदिर पूरी तरह से नष्ट हो गया था। बाद में इस मंदिर को दोबारा बनवाया गया था ऐसी मान्यता है की इस मंदिर में आने से नेत्र रोग की समस्या दूर हो जाती है।
नैना देवी मंदिर का महत्व और मान्यता (Significance and Recognition of Naina Devi Temple in Hindi)
इस मंदिर की ख़ास बात यह है कि मंदिर के मुख्य गर्भ ग्रह में देवी अपने पूर्ण रूप में विराजमान नहीं है बल्कि मुख्य गर्भ ग्रह में, बीच में एक पिंडी पर दो नेत्र है जो कि नैना देवी है बायीं तरफ “काली देवी” और दाई तरफ ” भगवान गणेश” की मूर्ति स्थापित है. इस मंदिर में माँ के नेत्रो की एक पिंडी रूप में पूजा की जाती है।
माँ नैना देवी मंदिर के मुख्य द्वार पर दो शेरो की मुर्तोया बानी हुई है. इन्हे देखकर ऐसा प्रतीत होता है की जैसे ये दो शेर आने वाले सभी श्रद्धालुओं का स्वागत करते है मंदिर के अन्दर एक पीपल का विशाल पेड है और पेड के पार भगवान हनुमान की एक मूर्ति है।
नंदाअष्टमी के दिन यहां पर एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। मेले का यह उत्सव 8 दिन तक मनाया जाता है. जिसमे नंदा देवी की बहन नैनी देवी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है. मंदिर के प्रांगण को अलग-अलग तरह के फूलो से सजाया गया है. जो मंदिर की सुन्दरता को बढ़ावा देते है।
देवी पुराण के अनुसार नैना देवी मन्दिर ऐसी मान्यता है जो भी श्रद्धालु अपने सच्चे मन और श्रद्धा के साथ धागा या चुनरी बांधकर अपनी मनोकामना मांगते है और माँ नैना देवी उनकी सभी मनोकामना पूर्ण करती हैं। श्रद्धालुयो की मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु यहां पर दोबारा आते है और मां को नारियल चुनरी का प्रशाद चढ़ाकर और धागा खोलकर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
नैनीताल में आने वाले भक्त या पर्यटक इस मंदिर के साथ यहां की नैनी झील और प्राकतिक दृश्यों का आनंद ले सकते है है।
नैना देवी मंदिर की पौराणिक कथा ((Story of Naina Devi Temple in Hindi)
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सती राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थी जिनका का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था। एक बार दक्ष प्रजापति ने अपने निवास स्थान कनखल हरिद्वार में एक भव्य यज्ञ का आयोजन कराया और इस भव्य यज्ञ में दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को छोड़कर बाकि सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया। जब माता सती को पता चला की मेरे पिता ने इस भव्य यज्ञ मेरे पति को आमंत्रित नहीं किया। अपने पिता द्वारा पति का यह अपमान देख माता सती ने उसी यज्ञ में कूदकर अपने प्राणो की आहुति देदी थी।
यह सुचना सुनकर भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए अपने अर्ध-देवता वीरभद्र और शिव गणों को कनखल युद्ध करने के लिए भेजा। वीरभद्र ने जाकर उस भव्य यज्ञ को नस्ट कर राजा दक्ष का सिर काट दिया। सभी सभी देवताओं के अनुरोध करने पर पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को दोबारा जीवन दान देकर उस पर बकरे का सिर लगा दिया। यह देख राजा दक्ष को अपनी गलतियों का पश्च्याताप हुआ और भगवान शिव से हाथ जोड़कर क्षमा मांगी। तभी भगवान शिव ने सभी देवी देवताओं के सामने यह घोषणा कि हर साल सावन माह, में कनखल में निवास करूँगा।
भगवान शिव अत्यधिक क्रोधित होते हुए सती के मृत शरीर उठाकर पुरे ब्रह्माण के चक्कर लगाने लगे। तब पश्चात भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित करा था। जिस कारन से सती के जले हुए शरीर के हिस्से पृत्वी के अलग-अलग स्थानों पर जा गिरे। जहा-जहा पर सती के शरीर के भाग गिरे थे वे सभी स्थान “शक्तिपीठ” बन गए। जहा पर नैना देवी का मंदिर है इस स्थान पर माता सती के नेत्र गिरे थे। इसीलिए इस मंदिर की गणना 51 शक्तिपीठो में की जाती है। अधिकतर सभी भक्त और नैनताल में घूमने आये पर्यटक यहां पर आकर माँ नैना देवी के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है।
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नैना देवी मंदिर में कैसे पहुंचे (How to reach Naina Devi Temple in Hindi)
नैना देवी में पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले रामनगर आना होगा। जो आप बस या रेल दोनों माध्यम से आ सकते है वहा से आपको नैनीताल के लिए बस या टैक्सी लेनी होगी। नैनीताल बस स्टैंड से नैना देवी का मंदिर सिर्फ सिर्फ 2.5 km दूर है यहां से आप रिक्शा करके मंदिर में पहुंच सकते है। मंदिर सुबह 6 बजे से रात्री 10 बजे तक खुला रहता है।
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